गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले अहमदाबाद में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन समाप्त हो गया. इस दौरान राहुल गांधी ने बीजेपी और पीएम मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोला था. इसका नतीजा यह निकला कि अधिवेशन समाप्त होते ही नेशनल हेराल्ड केस में ईडी ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को नोटिस जारी ​कर दिया. अब शिवसेना यूबीटी प्रमुख उद्धव ठाकरे के अखबार सामना ने इसको लेकर कई सवाल उठाए हैं.

महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे के अखबार सामना ने ‘हेराल्ड’ के खिलाफ ईडी की जब्ती की कार्रवाई को सियासी बदला करार दिया है.

दरअसल, केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी ने नेशनल हेराल्ड’ मामले में ने सोनिया और राहुल गांधी को नोटिस जारी करने से पहले ‘यंग इंडियन’ और ‘एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड’ के खिलाफ जांच की एक श्रृंखला शुरू की थी. जांच के दौरान राहुल गांधी और सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए ईडी ने पूछताछ के लिए अपने दफ्तर बुलाया था. उसके बाद से इस मामले में ईडी व किसी अन्य जांच एजेंसी ने कोई कार्रवाई नहीं की.

सामना के संपादकीय में सवाल उठाया गया है कि अगर वित्तीय लेनदेन में गड़बड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग की वजह से सोनिया और राहुल के खिलाफ ईडी ने नोटिस जारी किया तो फिर देश के दुश्मन दाऊद इब्राहिम, इकबाल मिर्ची की संपत्ति को ईडी ने कैसे जांच के दायरे से मुक्त कर दी?

मोदी-शाह के शरण में जाने का प्रफुल्ल पटेल को ऐसे मिला लाभ

सामना ने दावा किया है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू का तो देश को आजाद कराने और नए भारत के निर्माण में तो अहम योगदान भी था, लेकिन इकबाल मिर्ची जैसे लोगों का देश के निर्माण में क्या योगदान है? अगर ऐसा है तो मोदी सरकार ने उनकी संपत्तियों को क्लीन चिट देकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर चार चांद लगा दिए क्या?

उद्धव ठाकरे के अखबार ने इसके पीछे के खेल का खुलासा करते हुए लिखा है कि जब प्रफुल्ल पटेल शरद पवार की पार्टी में थे तो ‘ईडी’ ने इकबाल मिर्ची (मुंबई ब्लास्ट शृंखला में आरोपी और दाऊद इब्राहिम के गुर्गे) के साथ व्यापार कर संपत्ति अर्जित करने की वजह से कार्रवाई की थी. प्रफुल्ल पटेल की संपत्ति दाऊद से जुड़ी होने की वजह से जब्त कर ली गई.

ईडी की जांच के दायरे में आने के बाद प्रफुल्ल पटेल मोदी-शाह के शरण में चले गए. इसके लिए उन्होंने शरद पवार को ‘धोखा’ देकर मोदी-शाह को खुश किया. इसका सीधा असर यह हुआ कि दाऊद-मिर्ची की सैकड़ों करोड़ की संपत्ति ‘साफ’ कर मुक्त कर दी गई. यानी मिर्ची लेन-देन को ही क्लीन चिट दे दी गई. जबकि मिर्ची की ये सभी संपत्तियां सैकड़ों करोड़ की थीं.

दाऊद-मिर्ची के भ्रष्टाचार के सामने ‘हेराल्ड’ का टर्नओवर कुछ भी नहीं है, लेकिन नेहरू को दोषी ठहराकर उसे बरी क्यों किया गया? सामना के मुताबिक ‘नेशनल हेराल्ड’ के खिलाफ कार्रवाई कांग्रेस, गांधी और बीजेपी के राजनीतिक विरोधियों के लिए एक चेतावनी है. यह चेतावनी है ‘चुप रहो’.  

 नेशनल हेराल्ड मामला क्या है?

बता दें कि साल 2008 में वित्तीय कारणों से नेशनल हेराल्ड अखबार बंद हो गया. गांधी परिवार ने इसे दोबारा शुरू करने के लिए नया फंड जुटाए थे. इस मामले में जांच अधिकारियों का कहना है कि ये सभी लेन-देन फर्जी और मनी लॉन्ड्रिंग अधिनियम का उल्लंघन है. फर्जी डोनेशन, फर्जी विज्ञापनों से हुई आय को संपत्ति में निवेश किया गया. यह कृत्य आपराधिक प्रकृति का है.

ईडी ने इसी आधार पर ‘नेशनल हेराल्ड’ की जांच कर 661 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त की है. इसमें मुंबई के बांद्रा स्थित ‘हेराल्ड हाउस’, लखनऊ की एक इमारत भी शामिल है. दिल्ली ‘हेराल्ड हाउस’ पर भी जब्ती का नोटिस ईडी ने जारी किया है.